जी हां,रुद्रपुर के ग्राम किरतपुर में चुनावी मैदान में मात्र दो प्रत्याशी खड़े होने के कारण आर्थिक रूप से थोड़ा कमजोर महिला प्रत्याशी के तौर पर खड़ी “आशा दीदी” यानी आशा कार्यकर्ती रविता को समाज के ठेकेदारों द्वारा चुनावी मैदान से बाहर कर निर्विरोध चुनाव जीतने के लिए साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल कर सारा जतन किया गया पर ग्राम प्रधान पद के लिए खड़ी रविता का ईमान नहीं डोला और साम दाम दंड भेद से भी जब बात नहीं बनी तो आशा दीदी का नामांकन खारिज करवाने के लिए तीन आपत्ति लगा दी गई पर वहां भी ईश्वर ने स्वाभिमानी महिला रविता का ही साथ दिया और रिटर्निंग अफसर ने गलत पाई गई तीनों आपत्तियों को खारिज कर दिया पर बात यहां खत्म नहीं हुई…
इसके बाद धनबली,बाहुबली और सफेदपोश समाज के ठेकेदारों ने जन सेवा का उपदेश लिए चुनाव के मैदान में खड़ी इस महिला पर अपना नामांकन वापस लेने के लिए कई प्रकार के लालच देने के साथ-साथ उन्हें डराया/धमकाया भी पर बावजूद इसके स्वभावनी रविता टस से मस नहीं हुई और अपने निर्णय को नहीं बदला,साथ ही साथ जन सेवा के मार्ग पर जाने का निर्णय लेते हुए रविता ने अपना नामांकन भी वापस नहीं दिया…परिवार पर लगातार पड़ रहे नामांकन वापस लेने के दबाव को देखते हुए रविता बीते देर शाम किसी गोपनीय स्थान पर चली गई थी और आज नामांकन वापसी के आखिरी दिन निर्धारित 5:00 बजे के बाद समय सीमा खत्म होते ही पुनः अपने गांव लौट आई हैं… यही कारण है कि अब किरतपुर की इस स्वाभिमानी “आशा दीदी” के साहसिक निर्णय की चर्चा पूरे गांव साथ-साथ आसपास के क्षेत्र में भी हो रही है…
दरअसल इस पूरे मामले की चर्चा होना इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि की ग्राम किरतपुर की निवर्तमान प्रधान निर्मला देवी पहले तो बड़े जोर शोर से एक बार फिर प्रधान बनने के लिए चुनावी मैदान में उतर गई थी और गांव की गलियों में पोस्टर बैनर भी लगवा दिए थे…निर्मला देवी ने ग्राम सभा में विकास के कई अच्छे-अच्छे कार्य भी करवाए थे,जिसे लेकर बड़े मंचों पर उन्हें प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कई बार सम्मानित भी किया गया था पर न जाने क्यों निर्मला देवी ने एकाएक चुनाव न लड़ने का निर्णय ले लिया और चुनावी मैदान से पीछे हट गई…इस बात को लेकर आप ग्राम वीडियो में तरह-तरह की चर्चाएं भी हो रही हैं,लिहाजा अब चुनावी मैदान में मुख्य रूप से एक महिला और पुरुष के बीच ही चुनावी जंग होनी है…
पूर्व प्रधान निर्मला देवी के निर्णय को देखकर लोग ऐसा समझ रहे थे कि “आशा दीदी” रविता भी आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण चुनावी मैदान छोड़ देंगी पर साम दाम दंड भेद की नीति को फेल करते हुए धन बल और बहू बोल के आगे ना झुकने के साथ ही ये स्वाभिमानी महिला चुनावी मैदान से पीछे हटने के स्थान पर अपने चुनाव लड़ने के निर्णय पर कायम रही…गांव के आसपास के धन बाली और बाहुबलियों के साथ-साथ बड़े-बड़े सुरमा भी सभी प्रकार का गुणा गणित लगाने के बाद भी रविता का ईमान नहीं खरीद पाए और अब “आशा दीदी” चुनावी मैदान स्वाभिमान के साथ मजबूती से डट गई हैं…लिहाजा अब देखना यह होगा कि जन सेवा के उद्देश्य से चुनावी मैदान में अपना सर ऊंचा कर हर परिस्थिति में खड़े रहने का निर्णय लेने वाली आशा दीदी रविता को बदले में वोट के रूप में जनता का कितना प्यार मिलता है ?